सम्पादकीय

महंगीसे जीडीपीपर नकारात्मक प्रभाव


बाल मुकुन्द ओझा

महंगीने नेहरूसे लेकर मोदीतक किसीको नहीं बख्शा। नेहरू, इंदिरा कालमें समाजवादी और साम्यवादी संघटन महंगीके विरुद्ध मोर्चा निकालते थे। संसदमें एके गोपालन, भूपेश गुप्त, हिरेन मुखर्जी और ज्योतिर्मय बसुसे लेकर मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडीज, नाथ पेई, मनीराम बागड़ी, राजनारायण आदिके भाषण आज भी संसदकी कार्यवाहीमें दर्ज है। डा. राम मनोहर लोहियाने तीन आनेपर गरीबोंके जीवन बसरपर अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था। अटल बिहारी वाजपेयीने भी महंगीपर अपने तीखे आरोपोंसे संसदको दहला दिया था। दिनकर, काका और निर्भय हाथरसी, शेल चतुर्वेदी सरीखे कवियोंने भी महंगीके खिलाफ अपनी रचनाओंके माध्यमसे धावा बोला था। कहनेका मतलब है महंगी हर दशक और कालमें चर्चाका विषय रही है। महंगी आज भी आम आदमीकी दुश्मन बनी है। पहले बड़े-बड़े आन्दोलन सड़कोंपर देखनेको मिलते थे। माइकपर नेताओंकी दहाड़ सुननेको मिलती थी। परन्तु आज सोशल मीडियापर महंगीके खिलाफ आन्दोलन देखनेको मिल रहा है। ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसे महंगीने नहीं दबोच रखा है। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैसके दाममें पहले ही आग लग चुकी है। अब सरसो और रिफाइन तेल भी कम्पटीशन दे रही है। महंगीकी आग अब किराना दुकानतक पहुंच गयी है। महंगीकी आगसे रसोई भड़कने लगी है। सबसे सस्ती मानी जानेवाली मटरकी दालके भाव भी अरहरकी दालके बराबर पहुंच गये हैं। पेट्रोलके दाम शतक पार कर चुके है। इसी तरह बाहरसे आनेवाली सब्जियोंके अलावा प्याजके दाम आसमान छू रहे है। केंद्रीय बजटके दौरान लोगोंने महंगीसे राहत मिलनेकी उम्मीद जतायी थी लेकिन उसमें भी मायूसी ही हाथ लगी।

महंगीकी मार सबसे ज्यादा रसोईमें प्रयोग होनेवाले सरसोंके तेलपर दर्ज की गयी। गत वर्ष ७० से ८० रुपयेके बीच बिकनेवाला यह तेल मौजूदा समयमें १६० से १७० रुपयेतक बिक रहा है। रिफाइंड एवं घीके दामोंमें भी एक सालमें २० से २५ रुपयेतक बढ़ गये। डीजलके दामोंमें वृद्धिसे माल धुलाई महंगी हो गयी है जिसका सीधा असर हर चीजपर पड़ा है। अनाज, दाल-दलहन, चीनी, फल, सब्जी, इत्यादि आवश्यक वस्तुओंकी कीमतें आसमान छू रही हैं। पेट्रोलियम पदार्थोंने जनताको दिनमें तारे दिखा दिये है और खाने-पीनेकी वस्तुओंने रसोईको बिगाड़ कर रख दिया है। ऐसेमें पिछली सरकारको हर बातके लिए दोषी ठहराना लोगोंको हजम नहीं हो रहा है। अच्छी बातें काफूर हो गयी है अब इसे लोग मजाकके तौरपर लेने लगे है। पेट्रोल सौको पार हो गया है तो रसोई गैसने लोगोंका जीना दूभर कर दिया है। खाद्य तेल और दालोंके भाव आसमानको छूने लगे है। मूंग, उड़द और अरहर दालोंके भाव सवा सौके ऊपर पहुंच गये है। प्याज और लहसूनने आम आदमीका साथ छोड़ दिया है। सरसों, सोयाबीन और मूंगफली तेल उछाल कर आसमानपर पहुंच गया है। पिछले छह माहमें सरसों तेलके भाव  दुगुने हो गये है। सर्वोच्च अदालतके फैसलेके बाद अभिभावकोंपर फीसकी बेरहम मार पड़ी है। चहुंओर महंगीके रौद्र रूपसे लोग हलकानमें है। होटलोंमें खाना महंगा हो गया है। मॉल भाड़ा बढऩे लगा है। देशमें महंगीका कहर जारी है। आर्थिक तंगीसे जूझ रहे देशवासियोंको महंगीने बेहाल कर रखा है। आर्थिक मोर्चेपर विफलता और बढ़ती बेरोजगारीसे आहत मोदी सरकारपर अब महंगीने जोरदार हमला कर दिया है। महंगीका सीधा अर्थ है वस्तुओं और सेवाओंकी कीमतोंका बढ़ जाना यानि रुपयेकी कीमतका कम हो जाना है। महंगीपर लगाम लगानेके सरकारके सारे प्रयास फेल हो गये है। भारतकी राजसत्ता दूसरी बार सम्भालनेके बाद भाजपा सरकार और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीको महंगीसे दो-दो हाथ करने पड़ रहे है।

जन-साधारणको फिलहाल महंगीसे राहत मिलती नहीं दिख रही है। महंगीने फिरसे देशमें दस्तक देकर जीना हराम किया है। मोदी राजमें देशमें महंगी लगातार बढ़ती ही जा रही है। इसकी सबसे ज्यादा मार दिहाड़ी मजदूरों और गरीबोंपर तो लाजिमी रूपसे पड़ी ही है साथ ही मध्यम वर्ग भी इसकी बेरहम मारसे अछूता नहीं रहा है। हालांकि भ्रष्टाचारपर कुछ हदतक लगाम लगानेमें मोदी सरकार कामयाब रही है। परन्तु महंगीके मोर्चेपर सरकारको आम आदमीके आक्रोशका सामना करना पड़ेगा। महंगी दर बढऩेका का अर्थ है कि वस्तुओंके दाम बढ़ेंगे। महंगी दरमें वृद्धिके साथ रुपयेकी क्रय शक्ति घटेगी, जिससे खपत घटेगी और जीडीपी ग्रोथपर नकारात्मक असर पड़ेगा, जिससे लक्ष्य अपनी राहसे भटक सकता है।