सम्पादकीय

स्वच्छ पर्यावरणसे ही जीडीपीमें वृद्धि


डा. भरत झुनझुनवाला

उत्तराखंडके जंगलोंमें भीषण आग लगी हुई है। भारत समेत सम्पूर्ण धरतीका तापमान बढ़ रहा है। अगले वर्षोंमें इस प्रकारकी आपदाएं बढेंगी। इन विध्वंसक प्राकृतिक घटनाओंके कारण पर्यटन और निवेश दोनोंमें गिरावट आती है। घरेलू निवेशक उन स्थानोंको रहनेके लिए चुनते हैं जहां उनको स्वच्छ पर्यावरण, साफ पानी और साफ हवा मिले। इसलिए अपने देशसे तमाम अमीर लोग अपनी पूंजी लेकर विदेशोंमें जाकर बस रहे हैं। यहां निवेश कम हो रहा है और हमारा जीडीपी पिछले छह वर्षोंमें लगातार गिर रहा है। लेकिन सरकार पर्यावरण और निवेश दोनोंकी चिंता न करते हुए बड़ी योजनाओंको त्वरित स्वीकृतियां देनेका प्रयास कर रही है और इन स्वीकृतियोंको देनेमें पर्यावरणकी अनदेखी कर रही है। सरकार समझ रही है कि बड़ी योजनाएं लगेंगी तो आर्थिक विकास चल निकलेगा। लेकिन बड़ी योजनाओं द्वारा स्वयं निवेशके बावजूद उनके द्वारा की जानेवाली पर्यावरणकी हानिसे कुल निवेश घट रहा है। जैसे सरकारने थर्मल पावर प्लांट द्वारा जहरीली गैसोंके उत्सर्जनके मानकोंको ढीला कर दिया है। इससे देशमें बिजलीका उत्पादन तो सस्ता हो जायेगा लेकिन साथ-साथ हवा प्रदूषित होगी। बिजली सस्ती होनेसे उद्योग लग सकते हैं, लेकिन प्रदूषणके विस्तारके कारण अमीर लोग यहांसे बाहर जानेको मजबूर होंगे। इन दोनों विपरीत प्रबावमें अमीरोंका बहार जाना ज्यादा प्रभावी है। इसलिए विकास दर घट रही है।

किसी बड़ी इकाईको लगानेके लिए पर्यावरण मंत्रालयसे पर्यावरण स्वीकृति लेना होता है। इस स्वीकृतिको हासिल करनेके लिए उद्यमीको पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी पड़ती है। इसके बाद पर्यावरण मंत्रालयकी कमेटी निर्णय करती है कि परियोजनाको स्वीकृति दी जाय या नहीं। वर्तमानमें इन कानूनोंमें सरकारने कई परिवर्तन प्रस्तावित किये हैं। जैसे पर्यावरण प्रभाव आकलनके बाद जन-सुनवाई करनेकी जरूरतको कई परियोजनाओंके लिए निरस्त करनेका प्रस्ताव है। कई पुरानी परियोजनाएं बिना पर्यावरण स्वीकृतिके चल रही हैं उन्हें पोस्ट फैक्टों यानी चालू होनेके बाद भी पर्यावरण स्वीकृति देनेकी व्यवस्था की जा रही है। सिंचाई और नदियोंकी ड्रेजिंगके लिए पर्यावरण स्वीकृतिकी जरूरतको समाप्त किया जा रहा है। इन सब कदमोंके पीछे सरकारका मंतव्य है कि इस प्रकारकी परियोजनाएं शीघ्र लागू हों और देशका आर्थिक विकास बढ़े। लेकिन इन परियोजनाओंके पर्यावरण प्रभाव आकलनको ढीला करनेसे देशका जल और वायु प्रदूषित होगा। अपने देशके अमीर विदेशको चले जायेंगे जैसा कि पिछले छह वर्षोंसे तेजीसे हो रहा है और हमारा जीडीपी बढऩेके स्थानपर गिरेगा जो पिछले छह वर्षोंके रिकार्डसे ज्ञात होता है।

हमें ध्यान देना चाहिए कि ताजमहल, वाराणसी, समुद्र तटोंपर बीच, पहाड़ोंपर बर्फ इत्यादि उपलब्धियोंके बावजूद अपने देशमें विदेशी पर्यटकोंका आगमन बहुत ही कम संख्यामें होता है क्योंकि यहांका सामाजिक और भौतिक पर्यावरण अनुकूल नहीं है। ट्यूनीशिया और मालद्वीप जैसे छोटे-छोटे देश हमारे समकक्ष अपनी प्राकृतिक उपलब्धयोंसे सौ गुना रकम अर्जित कर रहे हैं। इस परिप्रेक्षमें पर्यावरण प्रभाव आकलनको और सख्त बनाना चाहिए। मैं आपके सामने राष्ट्रीय जलमार्ग एक जो कि वाराणसीसे हल्दियातक बनाया जा रहा है, का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहूंगा। इस जलमार्गको बनानेके पीछे आधार यह था कि जलमार्गसे मालकी ढुलाईका खर्च १.०६ रुपये प्रति टन प्रति किलोमीटर लगेगा जबकि रेलसे इसका खर्च १.३६ प्रति टन प्रति किलोमीटर लगता है। लेकिन साथ ही जलमार्गसे वाराणसीसे हल्दियाकी दूरी १३०० किलोमीटर पड़ती है जबकि रेलसे ८०० किलोमीटर। इसलिए एक टन मालको हल्दियासे वाराणसीतक जल मार्गसे लानेका वास्तविक खर्च १३७० रुपये प्रति टन पड़ता है। जबकि रेलसे १०८० रुपये प्रति टन। लेकिन सरकारी अधिकारियोंको बड़ी-बड़ी योजनाएं ज्यादा पसंद हैं इसलिए इस सीधी-सी बातको नजरंदाज करते हुए इस जलमार्गका निर्माण हो रहा है। ४५०० करोड़की परियोजना भारी खर्च होनेके बावजूद इक्के-दुक्के जहाज ही चल रहे हैं। लेकिन गंगाकी ड्रेजिंग की जा रही है जिससे गंगाकी तलहटीमें रहनेवाले जीव-जंतु जैसे- कछुए, डालफिन, केचुए और अन्य जीव प्रभावित हो रहे हैं। पानी प्रदूषित हो रहा है। यदि जहाज चले तो जहाजोंके बाहरके जहरीले पेंटसे पानी भी जहरीला होगा। जहाजोंसे उत्सर्जित कार्बन पानीमें सोख लिया जायगा जिससे भी पानीकी गुणवत्ताका ह्रास होगा। इस प्रकार जलमार्ग निर्माणके इन पर्यावर्णीय दुष्प्रभावोंको अनदेखा करके इस परियोजनाको लागू किया गया है। इस परियोजनाकी सफलतापर संदेह है चूंकि इसका भाड़ा अधिक आता है और यदि यह सफल हो भी गयी तो इसके पर्यावर्णीय दुष्प्रभाव इतने ज्यादा होंगे कि वाराणसी और कोलकता जैसे स्थानोंपर जो पर्यटक आते हैं वह भी कम हो जायेंगे। ऐसेमें देशकी जीडीपी बढऩेके स्थानपर घटेगी। इसके अतिरिक्त यदि हमारी वायु प्रदूषित हो गयी, नदियां प्रदूषित हो गयीं और पीनेका पानी प्रदूषित हो गया तो जन-स्वास्थ्यमें भी भारी गिरावट आती है और उससे भी पुन: हमारा जीडीपी गिरता है। जैसे यदि कोई कर्मी प्रदूषित हवाके कारण बीमार पड़ता है तो वह अनुत्पादक हो जाता है।

सरकार द्वारा यह प्रयास किया जा रहा है कि पर्यावरण स्वीकृति, जंगल काटनेकी स्वीकृति, वन्य जीव स्वीकृति, तटीय क्षेत्रोंकी स्वीकृति और प्रदूषणकी स्वीकृति सबको एक साथ उपलब्ध करा दिया जाये। यह प्रयास सही दिशामें है। इससे उद्यमीको राहत मिलेगी। किसी परियोजनाको स्थापित करनेके लिए उद्यमीको तमाम अलग-अलग जगह भटकनेकी जरूरत नहीं होगी। सरकारके द्वारा सौर ऊर्जाको जो बढ़ावा दिया गया है जिसके लिए भारतको वैश्विक एजेंसियों द्वारा सम्मानित किया गया है वह भी सराहनीय है। लेकिन यह कदम पर्याप्त नहीं हैं। जरूरत इस बात की है कि हम अपने समग्र पर्यावरणकी रक्षा करें। जिससे उत्तराखंडमें जंगलका जलना, गंगाके पानीका प्रदूषित होना इत्यादि न हो। देशका पर्यावरण स्वच्छ और स्निग्ध हो, ताकि देशके अमीर देशमें ही रहकर अपनी पूंजीका निवेश देशमें ही करनेको ललायित हों और देशके जीडीपीको बढ़ानेमें सहायक बने। वर्तमान पालिसी जिसमें हम परियोजनाओंको बढ़ानेके लिए पर्यावरणको नष्ट कर रहे हैं यह देशके विपरीत साबित होंगी। क्योंकि पर्यावरण नष्ट होनेसे इन परियोजनाएंके लगनेके बावजूद जीडीपी नहीं बढ़ेगा चूंकि अमीर लोग स्वच्छ पर्यावरणकी लालसामें अपनी पूंजीके साथ विदेश रवाना हो जायेंगे।