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स्वतंत्र शिक्षाके सपनोंको राष्ट्ररत्न बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने किया साकार


काशी विद्यापीठ 

असहयोग आन्दोलनसे उपजा काशी विद्यापीठ की स्थापना १० जनवरी १९२१ को बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने की थी। काशी विद्यापीठ के प्रादुर्भाव के पीछे हिन्दुस्तान का एक लम्बा इतिहास जुड़ा हुआ है। ब्रिटिश हुकूमतके दबावमें शिक्षा व्यवस्था को लेकर व्यापक असंतोष था। असहयोग आन्दोलनके दौरान सरकारी शिक्षण संस्थाओंके बहिष्कार का निर्णय लिया गया। इस दौरान राष्ट्रीय शिक्षाविद् राष्ट्ररत्न बाबू शिवप्रसाद गुप्त के मन में स्वतंत्र शिक्षा की कल्पना ने उड़ान भरी और इस प्रकार १० फरवरी १९२१ काशी विद्यापीठने आकार लिया।

बाबू शिव प्रसाद गुप्त जी ने दस लाख रुपये से शिक्षा निधि के नाम से एक ट्रस्ट बनाया। उसके ब्याज के अलावा चालीस हजार रुपये प्रतिवर्ष देने का आश्वासन  भी दिया था। शुरू में कुछ आर्थिक कठिनाई आयी तो उन्होंने चौक कटरे से होने वाली आय को भी दान दे दिया। विद्यापीठ कर्णघंटा स्थित एक धर्मशाला में स्थानांतरित किया गया। बाद में राष्ट्ररत्न शिवप्रसाद गुप्त ने चकलाबाग की जमीन खरीदी और ट्रस्ट को दान दे दिया।

बाबू श्री शिव प्रसाद गुप्त जी वर्ष १९१३ में जापान गये थे। स्वाधीन एशिया की राजधानी में उन्होंने एक ऐसी शिक्षण संस्था देखी जो सरकारी सहायता और हस्तक्षेप से मुक्त रहते हुए स्वतंत्र रूप से शिक्षा प्रदान कर रही थी। उस दौरान काशी में भी ऐसी संस्था स्थापित करने का उनके मन में विचार आया। जो अपनी भाषा में एवं बिना सरकारी सहायता के युवकों में चरित्र निर्माण करते हुए देश प्रेम की भावना भरने में समर्थ हो। इस बीच वर्ष १९२० असहयोग आंदोलन प्रारम्भ हुआ। सरकारी नौकरी, सरकारी शिक्षा का बहिष्कार इस आंदोलन का अंग था। अपनी कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए बाबू श्री शिव प्रसाद गुप्त जी को अनुकूल माहौल मिल गया। राष्ट्रीय शिक्षा की कल्पना को साकार करने के लिए उन्होंने पहल की। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा की कार्य योजना तैयार किया। कमेटी ने श्री शिव प्रसाद गुप्त जी के प्रस्ताव को तत्काल स्वीकृति दे दी। यही नहीं उन्होंने इस संबंध में कई पत्र लिखे और इसके बाद काशी विद्यापीठ की स्थापना हुई।