सम्पादकीय

कांग्रेस संघटनात्मक कार्यशैलीमें सुधारकी जरूरत

आनन्द उपाध्याय ‘सरस’ भारतके स्वतंत्रता आन्दोलनमें कांग्रेसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। स्वतंत्रताप्राप्तिके बाद दशकोंतक इस राजनीतिक दलका केन्द्र और प्राय: अधिकांश राज्योंमें सत्तारूढ़ पार्टीके रूपमें एकछत्र आधिपत्य स्थापित रहा। हालांकि इस समयान्तरालमें पार्टी विभिन्न अंतर्विरोधोंके चलते लगभग दर्जनभर बार विभाजित भी हुई। लेकिन फिर भी १९६९ के विभाजनके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसने अपने आगेके वर्षोंमें भी […]

सम्पादकीय

चेतनाका महत्व

रणजीत सिंह किसी भी कार्यके लिए मनुष्य जब सक्रिय होता है तो उसके पीछे उसकी बुद्धि होती है। बौद्धिक क्षमताके आधारपर ही दुनियाके किसी भी देशका कोई भी नागरिक कार्यका निष्पादन करता है और उसीके अनुसार विकास तथा सफलता प्राप्त करता है और इसीके अनुसार समस्याएं और असफलताएं भी दर्ज करता है। तात्पर्य यह है […]

सम्पादकीय

आंकड़ोंमें विसंगतियां

कोरोना महामारीके दौरमें संक्रमितोंके आंकड़ोंमें भले ही विशेष विसंगति नहीं रही हो लेकिन मृतकोंकी संख्याको लेकर विसंगतियां अवश्य सामने आयी। इससे वास्तविक्ताके प्रति भ्रमकी स्थिति बनी रही। देशके छहसे अधिक राज्योंमें इसकी शिकायतें मिली और इसे लेकर राजनीति भी शुरू हो गयी। ऐसी विसंगतियां क्यों और किन परिस्थितियोंमें उत्पन्न हुई, इसपर सवाल उठना स्वाभाविक है। […]

सम्पादकीय

महामारीके दौरमें योगकी महत्ता

 योगेश कुमार गोयल           गत दिनों मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान (एमडीएनआईवाई) के सहयोगसे आयुष मंत्रालय द्वारा सातवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवसके लिए एक घंटेका पूर्वावलोकन कार्यक्रम आनलाइन आयोजित किया गया, जिसमें केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारणमंत्री प्रकाश जावडेकर तथा केन्द्रीय आयुष राज्यमंत्री किरेन रिजिजू द्वारा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस २०२१ की थीम ‘योगके साथ रहें, घरपर रहेंÓ के […]

सम्पादकीय

महंगीपर काबू पाना आवश्यक

डा. गौरीशंकर राजहंस       कोरोना महामारीके दौरान अर्थशास्त्रियोंका यह अनुमान था कि महामारीके समाप्त होते-होते अर्थव्यवस्थापर बहुत बुरा असर पड़ेगा। परन्तु इतना बुरा असर पड़ेगा इसकी किसीने कल्पना भी नहीं की थी। आजकी तारीखमें भारतकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो गयी है और बड़ेसे बड़ा अर्थशास्त्री भी दावेके साथ यह नहीं कह सकता है कि महामारीके […]

सम्पादकीय

सद्ïगुणोंके विकासका वाहक योग

डा. शंकर सुवन सिंह योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया हैं। योग शरीर, मन और आत्माको एक सूत्रमें बांधती है।   योग जीवन जीनेकी कला है। योग दर्शन है। योग स्वके साथ अनुभूति है। योगसे स्वाभिमान और स्वतंत्रताका बोध होता है। योग मनुष्य एवं प्रकृतिके बीच सेतुका कार्य करती है। योग मानव जीवनमें परिपूर्ण सामंजस्यका द्योतक है। योग […]

सम्पादकीय

प्राणायामकी कलाएं

ओशो आपके हृदयमें जो अग्नि जल रही है, उसकी एक खास मात्रा इस शरीरको मिल रही है। उस खास मात्रामें ही यह शरीर जीवन्त है। यह अग्नि आपके भीतर है। यह अग्नि ऊर्जा है। इस ऊर्जाका वाहन बन सकता है और इससे बाहर जाया जा सकता है। यह अग्नि जैसे शरीरमें लाती है, ऐसा ही […]

सम्पादकीय

ट्विटरको दो-टूक

नये आईटी कानूनकी उपेक्षा कर रहे सोशल मीडिया मंच ट्विटरपर शिकंजा कसते हुए संसदीय समितिने शुक्रवारको कड़ी फटकर लगायी। समितिने दो-टूक कहा कि कम्पनीको हर हालमें भारतके कानूनका पालन करना ही होगा। नया आईटी कानून लागू करनेपर तनातनीके बीच ट्विटरके प्रतिनिधि संसदीय समितिके समक्ष पेश हुए थे। सवाल-जवाबके बीच ट्विटरके प्रतिनिधिने सफाई दी कि हम […]

सम्पादकीय

विदेशी मालपर जनस्वास्थ्य स्वाहा

डा. भरत झुनझुनवाला        सन्ï १९७० में भारतमें बिकनेवाली दवाओंमें बहुराष्ट्रीय कम्पनियोंका दो-तिहाई हिस्सा था। इसके बाद सरकारने प्रोडक्ट पेटेंटको निरस्त कर दिया। पेटेंट, यानी नये अविष्कारोंको बेचनेका एकाधिकार दो तरहसे बनाये जाते हैं। प्रोडक्ट पेटेंटमें आप जिस माल (प्रोडक्ट) का आविष्कार करते हैं और उसे पेटेंट करते हैं, उस मालको कोई दूसरा बनाकर नहीं बेच […]

सम्पादकीय

आध्यात्ममें नृत्य परम्परा

हृदयनारायण दीक्षित भारतीय अध्यात्म आन्तरिक आनन्द है। आध्यात्मिक प्रभावसे लोग गाते-बजाते-नृत्य करते हैं। भारतके गांवोंमें भी नृत्य परम्परा रही है। मांगलिक उत्सवमें नृत्योंके आयोजन होते रहे हैं। भारतके आदिवासी, वनवासी सहित अनेक समूहोंके नृत्य आकर्षक रहे हैं। मांगलिक उत्सवमें बच्चोंसे लेकर बूढ़े, बुजुर्ग भी आध्यात्मिक नृत्योंका आनन्द लेते रहे हैं। सभी राज्योंके भी अपने-अपने नृत्य […]