सम्पादकीय

संसदका मान गिराती असंसदीय भाषा

भाषा अभिव्यक्तिका सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। मनुष्यको सभ्य बनानेके लिए शिक्षा जरूरी है और सभी प्रकारकी शिक्षाका माध्यम भाषा ही है। किसी जमानेमें संसदकी भाषाको श्रेष्ठ और मर्यादित माना जाता था। अब १९९० के दशकके बाद यह धारणा लगातार खंडित हो रही है, क्योंकि हमारी विधायिका और कार्यपालिकाकी भाषा विकृत होती जा रही है। कमोबेश […]

सम्पादकीय

मंत्रोंकी शक्ति

अरुण मंत्रका शाब्दिक अर्थ है, मनन, चिंतन करना। किसी भी समस्याके समाधानके लिए, काफी चिंतन, मनन करनेके बाद जो उपाय, विधिए युक्ति निकलती है, उसे एक सूत्रमें पिरो देनेको आमतौरपर मन्त्र कहते हैं। वेदोंमें किसी भी यज्ञ, स्तुति या अन्य कोई कार्य, करनेकी नियमपूर्वक एवं विस्तारपूर्वक विधिको संक्षिप्त करके संस्कृतमें मन्त्र रूप लिख दिया जाता […]

सम्पादकीय

आत्मनिर्भरताकी ओर

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण लोकसभामें आम बजटपर विपक्षके सवालोंका जवाब देते हुए आक्रामक रहीं। बजट सत्रके पहले चरणका कल आखिरी दिन था। वित्तमंत्रीने कहा, मौजूदा बजट भारतको आत्मनिर्भर बनानेकी दिशामें आगे बढ़ चला है। अब हम वैश्विक स्तरपर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। बजट नीतियोंपर आधारित है। कोरोना महामारी जैसी चुनौतीपूर्ण स्थिति भी सरकारको दीर्घकालिक […]

सम्पादकीय

मनुष्यकी अंतरचेतनाका विकास

 डा. भरत झुनझुनवाला चाल्र्स डार्विनका जन्म १२ फरवरीको १८०९ में हुआ था। डार्विनने दक्षिण अमेरिकाके गालापागोस द्वीपमें कछुओंके क्रमसे विकासका गहन अध्यन किया। अध्ययनके आधारपर उन्होंने विचार बनाया कि वर्तमान मनुष्यकी उत्पत्ति क्रमसे बन्दरोंसे हुई है। उस समय पाश्चात्य जगतमें मान्यता थी कि गॉडने मनुष्यको बनाया है जैसे छेनी-हथौड़ी लेकर मूर्तिकार एक मूर्तिको बनाता है। […]

सम्पादकीय

विरोधी भावकी स्वीकार्यता

हृदयनारायण दीक्षित   लोकसभा और राज्यसभाके लिए अलग-अलग निर्वाचक मण्डल है। निर्वाचित सदस्य प्राय: किसी न किसी दलके टिकटपर चुने जाते हैं। इस तरह लोकसभा एवं राज्यसभाके सभी सदस्य किसी न किसी दलके प्रतिबद्ध सदस्य भी हैं। प्रत्येक सदस्यसे अपेक्षा की जाती है कि वह सदनकी कार्यवाहीमें हिस्सा ले। कार्यवाहीके दौरान अपने दलकी नीतियोंका पालन करें। […]

सम्पादकीय

टीकाकरणके बाद भी मास्क जरूरी

प्रशांत दास हम सभी कोरोना टीकाकरण अभियानके प्रारंभ होने तथा चरणवार तरीकेसे स्वास्थ्यकर्मियों और अग्रिम पंक्तिके कर्मियोंको टीका दिये जानेके बारेमें पढ़ और सुन रहे हैं। लेकिन क्या इसका अर्थ यह निकाला जाये कि कोरोना महामारी समाप्त हो चुकी है। संक्षेपमें यदि कहें तो इसका उत्तर है नहीं! इसलिए यह जरूरी है कि अभी हम […]

सम्पादकीय

जीवनकी विशेषता

श्रीराम शर्मा श्रद्धायुक्त नम्रताकी तरह अंतरात्मामें दिव्य प्रकाशकी ज्योति जलती रहे। उसमें प्रखरता और पवित्रता बनी रहे तो पर्याप्त है। पूजाके दीपक इसी प्रकार टिमटिमाते हैं। आवश्यक नहीं उनका प्रकाश बहुत दूरतक फैले। छोटेसे क्षेत्रमें पुनीत आलोक जीवित रखा जा सके तो वह पर्याप्त है। परमात्माके प्रति अत्यंत उदारतापूर्वक आत्मभावना पैदा होती है, वही श्रद्धा […]

सम्पादकीय

मोदी-बाइडेन वार्ता

अमेरिकाके राष्ट्रपति पदका दायित्व सम्भालनेके बाद जो बाइडेन और भारतके प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीके बीच सोमवारको टेलीफोनसे हुई पहली वार्ता अत्यन्त ही महत्वपूर्ण रही। इसका अन्तरराष्ट्रीय सन्दर्भमें विशेष मायने है। साथ ही यह भारत-अमेरिकी सम्बन्धोंके भावी स्वरूपको भी रेखांकित करेगी। वैसे दोनों देशोंके बीच द्विपक्षीय सम्बन्ध पहलेसे ही अच्छे हैं। बाइडेनके कार्यकालमें इन रिश्तोंको और […]

सम्पादकीय

आन्तरिक मामलोंमें बाहरी दखल

अवधेश कुमार किसी भी देशमें आन्दोलन होता है तो कहींसे भी लोग प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। प्रतिक्रियाएं सही हैं गलत हैं यह हमारे नजरियेपर निर्भर करता है। जिस देशका मामला होता है वह अपने तरीकेसे उसपर जवाबी प्रतिक्रियाएं देता है। यह विकसित सूचना संचारवाले वर्तमान विश्वकी सचाई है। कृषि कानूनोंके विरोधमें आन्दोलन जबसे शुरू हुआ […]

सम्पादकीय

जलविद्युत उत्पादनके दुष्परिणाम

विकेश कुमार बडोला रविवारको उत्तराखण्ड स्थित चमोलीमें हिमखण्ड टूटनेसे धौलीगंगापर बन रही जलविद्युत परियोजनाका बांध भी क्षतिग्रस्त हो गया। दो नदियोंके संगम स्थलपर अलकनंदा नदी साकार होती है। अलकनंदामें बहते बाढ़के पानीने तपोवनके निकट निर्माणाधीन तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजनाको भी ध्वस्त कर दिया। इसके बाद जोशीमठके आगे विष्णुगढ़-पिपलकोटी परियोजनामें भी बाढ़का पानी पहुंच गया। नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग […]