सम्पादकीय

तीसरी लहरकी कल्पना बेकार

डा. गोपाल चौरसिया   सूक्ष्मदर्शी यंत्रसे देखनेपर यह शरीर अति सुन्दर विविध प्रकारके कोशिकाओंके समूह जिसे हम उतक कहते हैं, से बना है। इसकी मूल इकाई कोशिका है। शरीर क्रियाका मूल आधार डीएनए एवं आरएनए। डीएनए नाइट्रोजिनस सब यूनिटका बड़ा कण है। यह न्यूक्लियसमें स्थित क्रोमोसोममें पाया जाता है। आरएनए कोशिकाके न्यूक्लियस और साइटोप्लाज्म दोनोंमें पाया […]

सम्पादकीय

बेरोजगारीके चलते नौकरी मजबूरी है

डा. राजेन्द्र प्रसाद यह स्थिति बेहद चिंताजनक और हमारी शिक्षा व्यवस्थाकी पोल खोलती हुई है। कोलकताके एक सरकारी मेडिकल कालेजमें मोरचरी यानी कि मुर्दाघरमें शवोंके रखरखावके लिए प्रयोगशाला सहायकके छह पदोंके लिए आठ हजार युवाओंने आवेदन किये हैं। दरअसल आम बोलचालकी भाषामें कहे तो यह डोमका पद है। मजेकी बात यह है कि इस पदके […]

सम्पादकीय

भारतमें भोजन एक जरूरत नहीं

 डा. अम्बुज इस प्रकार जलवायुका असर पेड़-पौधों और फसलपर होता है। वैसे ही परिवेशका असर आदमीपर होता है, आदमी अपने परिवेशके अनुसार जीता है। आजके दौरका परिवेश वर्तमान पीढ़ी एवं आनेवाली पीढ़ीके जीवनको तय करता है। आज जब हर तरफ महंगी, बाजारवाद एवं मुनाफाखोरीका हाहाकार मचा है, आदिम युगके समान आधुनिक भारतमें भोजन एक जरूरत […]

सम्पादकीय

ध्यान

वी.के. जायसवाल ध्यान ऐसी क्रिया है जिसमें व्यक्ति शरीरसे अलग होनेका अनुभव कुछ उसी तरहसे करता है जिस प्रकारसे मृत्युके समय अनुभव किया जा सकता है। गहरे ध्यानकी क्रियाका अनुभव हो या मृत्युके समयका अनुभव हो दोनोंमें ही बहुत कुछ समानताएं है क्योंकि दोनोंमें ही शरीरको छोडऩेका अनुभव होता है बस अंतर केवल इतना है […]

सम्पादकीय

खतरेका संकेत

देशमें कोरोना संक्रमणके दस प्रतिशत दरवाले जिलोंकी संख्यामें वृद्धि तीसरी लहरका खतरा गहरानेका संकेत है, जिसे गम्भीरतासे लेनेकी आवश्यकता है। पहली बार दस प्रतिशत दरवाले जिलोंकी संख्या ४७ से बढ़कर ५४ हो गयी है। इन जिलोंकी संख्यामें और वृद्धिकी आशंका बनी हुई है। ऐसे जिले केरल और पूर्वोत्तरके राज्योंतक सीमित हैं। महाराष्टï्रकी स्थिति भी चिन्ताजनक […]

सम्पादकीय

नष्ट होता संसदका मूल्यवान सत्र

राजेश माहेश्वरी     संसदमें पेगासस मामलेको लेकर गतिरोधके हालात बने हुए हैं। भारी शोरशराबे और हंगामेके चलते संसदकी कार्यवाही बार-बार बाधित हो रही है। इन हालातोंमें संसदका बहुमूल्य समय तो नष्टï हो ही रहा है, वहीं देशके आम आदमीसे जुड़े अन्य महत्वपूर्ण मुद्दोंको भी विपक्ष द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है। कोरोना कालमें संसदका मानसून सत्रका […]

सम्पादकीय

जलवायुके दुष्प्रभावसे खेती सुरक्षा

प्रमोद        अर्थव्यवस्थाके अन्य क्षेत्र जब नकारात्मक विकास दर दिखा रहे हों, तब देशके किसानोंका योगदान किसी वरदानकी तरह है। देशके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में ग्रामीण अर्थव्यवस्थाका योगदान लगभग ४५ फीसदी है। इसी वजहसे उन प्रवासी मजदूरोंको ग्रामोंमें रोजी-रोटी मिल पायी। हालांकि गैरकृषि कार्योंसे देशके ८० करोड़ लोगोंकी आजीविका चलती है, लेकिन इसमें बड़ा योगदान […]

सम्पादकीय

शाही मानसिकताके तले पिसता लोकतंत्र

श्यामसुन्दर मिश्र स्वतन्त्रता प्राप्तिके बाद अधिकांश नेता देशसेवा एवं देशभक्तिकी भावनासे लबरेज रहे। किन्तु कुछ चोटीके नेताओंने अपनी धमक एवं धनबलके चलते उन्हें अपने इरादोंमें कामयाब नहीं होने दिया। फलस्वरूप लोकतंत्र एक पार्टी एवं एक परिवारकी विरासत बनकर रह गया। यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनके कार्यकालमें विकास कार्य नहीं हुए किन्तु वह […]

सम्पादकीय

शब्दोंका सौन्दर्य

श्रीश्री रविशंकर जब हम शब्दोंकी शुद्धताको अनुभव करते हैं तो हम जीवनकी गहराईको अनुभव करते हैं और जीवन जीना आरंभ कर देते हैं। हम सुबहसे राततक शब्दोंको ही जीते हैं। हम इनके पीछेके उद्देश्योंको खोजनेमें सारे उद्देश्य भूल जाते हैं। यह इतना गंभीर हो जाता है कि नींद ही खो बैठते हैं। रातभर उन शब्दोंके […]

सम्पादकीय

दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण

असम और मिजोरमके बीच सोमवारको सीमा विवादको लेकर नागरिकों और पुलिसके बीच हुई हिंसक झड़प अत्यंत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। दो पड़ोसी राज्योंके बीच हुई हिंसाकी घटनामें छह जवान शहीद हो गये और पुलिस अधीक्षक सहित ५० से अधिक लोग घायल हो गये। दोनों राज्योंकी पुलिस और नागरिकोंके बीच कछार जिलेमें लगभग ४० मिनटतक […]