सम्पादकीय

किसानोंसे वार्ताकी उम्मीद

पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंहकी जयन्तीपर बुधवारको आन्दोलनकारी किसानोंने प्रदर्शनके २८वें दिन उपवास भी रखा। नये कृषि कानूनोंके खिलाफ देशभरमें एक समयका खाना नहीं खानेकी अपीलका कुछ प्रभाव तो अवश्य देखनेको मिला और आन्दोलनको तेज धार देनेकी रणनीति भी बनी लेकिन एक अच्छा संकेत यह भी मिला कि आन्दोलनकारी किसान संघटन अब सरकारसे वार्ता […]

सम्पादकीय

विद्वेषपूर्ण राजनीतिमें उलझा बंगाल

राजेश माहेश्वरी जो दृश्य इस समय बंगालमें है उससे प्रतीत होता है कि इस बार पश्चिम बंगालका चुनाव रोमांचक और आक्रामक होगा। वर्तमान विधानसभामें तृणमूलके २११ और भाजपाके मात्र तीन विधायक हैं। ममता बनर्जी लगभग एक दशकसे ही मुख्य मंत्री हैं, लिहाजा कुछ स्तरोंपर सत्ता-विरोधी लहर और रूझान दृष्टिïगोचर हो रहा है। फिर भी ममता […]

सम्पादकीय

ओलीके विरुद्ध जनतंत्र

विष्णुगुप्त नेपाल प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओलीके खिलाफ जनआन्दोलनसे उनकी पाटीमें ही बगावतकी स्थिति थी। ओली एक ऐसे अध्यादेशको राष्टरपतिसे स्वीकृति दिलायी थी जो लोकतंत्र विरोधी था इस विधेयकके द्वारा ओलीको ऐसा अधिकार मिल गया था जिससे संवैधानिक पदोंपर अपनी इच्छानुसार मोहरोंका पदास्थापन कर सकें। उनकी पार्टी और विपक्ष एक स्वरमें उक्त अध्यादेशकी वापसीकी मांग कर […]

सम्पादकीय

किसान आन्दोलनकी भटकती राह

ऋतुपर्ण दवे क्या किसान मजबूर है और खेती मजबूरी। यह प्रश्न बहुत ही अहम हो गया है। अब लग रहा है कि किसानोंकी स्थिति ‘उगलत लीलत पीर घनेरीÓ जैसे हो गयी है। बदले हुए परिवेश यानी सामाजिक एवं राजनीतिक दोनोंमें किसानोंकी हैसियत और रुतबा घटा है। किसान अन्नदाता जरूर है लेकिन उसकी पीड़ा बहुत गहरी […]

सम्पादकीय

जीवनका दृष्टिकोण

सदानन्द शास्त्री सनातन धर्मके विभिन्न ग्रंथोंमें अनेक रहस्य छिपे हैं। भविष्यका दूसरा नाम है संघर्ष, हृदयमें आज इच्छा होती है और यदि पूर्ण नहीं होती तो हृदय भविष्यकी योजना बनानेमें लग जाता है भविष्यमें इच्छा पूरी होगी ऐसी कल्पना करता रहता है किंतु जीवन न तो भविष्यमें न तो अतीतमें है जीवन तो इस क्षणका […]

सम्पादकीय

सतत सतर्कता जरूरी

कोरोनाके नये रूपसे पूरे विश्वमें चिन्ता और भयकी स्थिति उत्पन्न हो गयी है, क्योंकि इसकी मारक क्षमता पहलेकी तुलनामें ७० प्रतिशत अधिक है। अबतक ब्रिटेन सहित पांच देशों डेनमार्क, आस्ट्रेलिया, नीदरलैण्ड और इटलीमें यह पहुंच चुका है। भारतमें अभी कोरोनाका नया रूप प्रवेश नहीं कर सका है लेकिन लोगोंमें चिन्ता अवश्य बढ़ गयी है। भारत […]

सम्पादकीय

नये कानूनसे लाभान्वित किसान

निरंकार सिंह कृषि सुधारके विरोधमें दिल्लीके आसपास डेरा डालनेवाले किसान भी कांग्रेस शासित पंजाब और राजस्थानके ही ज्यादा हैं जो पूरे देशके किसानोंके ठेकेदार बनकर इन कानूनोंकी वापसी मांग कर रहे हैं। लेकिन देशमें आज भी कोई ऐसा किसान संघटन नहीं है जो पूरे देशके किसानोंकी रहनुमाई करता हो। देशकी ६५ फीसदीसे अधिक आबादी आज […]

सम्पादकीय

विपक्षके उकसावेसे उलझन

विकेश कुमार बडोला यदि भारतकी राजनीतिके बारेमें बात करें तो ज्ञात होता है कि गत सात वर्षीय राजनीति और उससे पूर्वकी दशकोंकी राजनीतिमें भू-नभका अंतर है। गत सात वर्षमें भारतीय राजनीति अति परिशुद्धताके समयसे गुजरी है। जो सज्जन लोग राजनीतिके कलंकसे अति व्यथित होकर राजनीतिसे ही मुंह फेर चुके थे, वे भी गत सात वर्षीय […]

सम्पादकीय

जनसंख्या नियंत्रणपर कारगर पहल जरूरी

अनूप भटनागर केन्द्र सरकार भले ही देशवासियोंपर जबरन परिवार नियोजन थोपनेका विरोध कर रही है लेकिन देशकी तेजीसे बढ़ती आबादी और इस वजहसे घटते संसाधन सरकारको देर-सवेर जनसंख्या नियंत्रणके लिये प्रभावी कदम उठानेपर मजबूर कर देंगे। केन्द्र सरकारने हालमें सर्वोच्च न्यायालयको सूचित किया है कि परिवारमें बच्चोंकी संख्याके बारेमें पति-पत्नीको ही निर्णय लेना होगा और […]

सम्पादकीय

एक-दूसरेके पूरक

जग्गी वासुदेव आदि शंकराचार्यकी मंडन मिश्रके साथ बहस हो गयी और शंकराचार्य जीत गये। फिर मण्डन मिश्रकी पत्नी बीचमें आ गयी और बोली आपने मेरे पतिको हरा दिया, परन्तु वह अपने आपमें पूरे नहीं हैं। हम दोनों एक-दूसरेके पूरक हैं। इसलिए आपको मुझसे भी बहस करनी होगी। मण्डन मिश्रकी पत्नीने देखा कि वह हार रही […]