Latest News नयी दिल्ली मध्य प्रदेश राष्ट्रीय

आगामी विधानसभा चुनाव के लिए राहुल गांधी से करिश्मे की उम्मीद में प्रदेश कांग्रेस


संजय मिश्र। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भले ही अपनी कार्यशैली को लेकर आलोचनाओं से घिरे हैं, लेकिन मध्य प्रदेश कांग्रेस ने उनसे करिश्मे की उम्मीद लगा रखी है। निचले स्तर पर संगठन की कमजोरी से जूझती कांग्रेस को उम्मीद है कि राहुल नवंबर में अपने मध्य प्रदेश प्रवास के दौरान कार्यकर्ताओं में उत्साह भर देंगे। यही कारण है कि प्रदेश कांग्रेस राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की तैयारी में जुट गई है। चूंकि इस यात्रा के संयोजक पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हैं, इसलिए भी राज्य से इसे जोड़ने की तैयारी हो रही है। पार्टी को उम्मीद है कि राहुल 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के एजेंडे को जनता के बीच प्रभावी ढंग से रखकर माहौल बना देंगे।

इस कोशिशों के बीच सच यह है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस चुनौती से जूझ रही है। यह चुनौती है जमीनी स्तर पर संगठन की कमजोरी। लगभग 15 साल के वनवास के बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर जैसे-तैसे सत्ता में आ गई थी। सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने कमल नाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी, लेकिन लगभग सवा साल बाद ही आपसी लड़ाई में उनकी सरकार चली गई। मुख्यमंत्री रहते कमल नाथ ने प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद भी अपने पास बनाए रखा। सरकार और संगठन दोनों का मुखिया होने के बाद भी वह वैसा करिश्मा नहीं कर सके, जिसकी कांग्रेस को जरूरत थी। गुटों में बंटी कांग्रेस अक्सर अनिर्णय या अंतर्विरोध जूझती रही। सरकार जाने के बाद भी कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा पूर्ववत बना रहा। अब जबकि भाजपा 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में पूरी ताकत से जुट गई है तो कांग्रेस को जमीनी सच्चाई का अहसास होने लगा है। जिलों में संगठन की कमजोरियों को खुद कमल नाथ ने स्वीकार करते हुए नेताओं को चेतावनी दी है कि यदि वे पद पर रहते हुए निष्क्रिय बने रहे तो उनका कोई वजूद नहीं बचेगा। बेहतर होगा कि निष्क्रिय लोग खुद पद छोड़कर हट जाएं। उनकी इस साफगोई के बाद माना जा रहा है कि कांग्रेस में जल्द ही निचले स्तर पर संगठनात्मक बदलाव के प्रयास शुरू किए जाएंगे। इसके साथ ही पार्टी को उम्मीद है कि राहुल की भारत जोड़ो यात्र से प्रदेश कांग्रेस में नई जान आएगी और कार्यकर्ता पूरे जोश के साथ विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट जाएंगे।

यह भी एक तथ्य है कि राहुल गांधी से करिश्मे की उम्मीद उस समय लगाई जा रही है जब गुलाम नबी आजाद के त्यागपत्र के बाद वह पार्टी के असंतुष्ट नेताओं के निशाने पर हैं। आजाद ने कांग्रेस की खराब होती स्थिति के लिए राहुल गांधी को ही जिम्मेदार ठहराया है। यह भी आरोप लगाया है कि उनमें दूरदर्शिता नहीं है तथा उनके नाम पर निर्णय उनके सुरक्षाकर्मी तथा उनकी मंडली के लोग लेते हैं। इस आरोप ने कांग्रेस में खलबली मचा दी है। राहुल के समर्थन में राज्यों से बयान देने की बाढ़ आ गई है, लेकिन इसके बावजूद अनेक कांग्रेसी भी स्वीकार करते हैं कि जिस भाव से कांग्रेस का नेतृत्व काम कर रहा है उससे तो भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मुकाबला करना मुश्किल है। केवल बयान या ट्वीट कर देने भर से कांग्रेस का बेड़ा पार होने वाला नहीं है। जो नेता कभी कांग्रेस की आवाज हुआ करते थे वे ही राहुल के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। जाहिर है संकट बड़ा है, लेकिन मध्य प्रदेश कांग्रेस इससे बेफिक्र लगती है। वह अपनी चाल से चल रही है।

कांग्रेस ने राज्य में हुए नगर निकाय चुनावों में भले ही पांच नगर निगमों में महापौर के पद पर विजय प्राप्त कर ली है, पर विधानसभा चुनाव की चुनौती इस जीत से कहीं बड़ी है। 2018 के चुनाव में कुछ सीटों से पिछड़ने वाली भाजपा ने जिस तरह से निचले स्तर तक संगठन की मजबूती के प्रयास किए उसके मुकाबले कांग्रेस की कोशिशें कमजोर रहीं। कई जिलों में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का संगठन कहीं भी नहीं टिकता है। हाल के दिनों में कांग्रेस के अधिकतर अभियान या कार्यक्रम रस्म अदायगी तक सिमटते दिखे। ट्विटर-फेसबुक पर बयानबाजी की बात छोड़ दें तो जमीनी स्तर पर कांग्रेस महज औपचारिक प्रदर्शन तक ही सिमटी है। यह भी एक सच है कि अंदरूनी खींचतान राज्य कांग्रेस की स्थायी समस्या बन चुकी है। एकता के गीत जरूर प्रत्येक बैठक में गाए जाते हैं, पर अंत में एकला चलो की नीति पर ही उसके बड़े नेता चलते हैं, जबकि भाजपा हर चुनाव के बाद अगले चुनाव की तैयारी में पूरी ताकत से जुट जाती है।