सम्पादकीय

जयंतीके बहाने राजनीति


बंगाल चुनावको लेकर तृणमूल कांगे्रस और भाजपाने पूरी तरहसे कमर कस लिया है। यही वजह रहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोसकी १२५वीं जयन्तीपर प्रधान मंत्री मोदीसे लेकर पश्चिम बंगालकी मुख्य मंत्री ममता बनर्जीने श्रद्धांजलि अर्पित कर राजनीतिक शक्तिका जिस प्रकार सिंहनाद किया, वह सोचनेपर विवश करता है। ममता बनर्जीने जहां नौ किलोमीटर लम्बे रोड शो की शुरुआत की। वहीं, प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने अपनी जनआकांक्षाओंके मनोभावको अद्वितीय तरीकेसे प्रस्तुत किया। एक सच्चे जननायक, देशवासियोंके प्रिय नेताजीके जन्मदिवसको राजनीतिका अखाड़ा बना दिया गया। हालांकि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस होते तो वह भी देशमें बढ़ रही वैमनस्यतापर कठोर प्रहार करते। जिस प्रकार पश्चिम बंगालमें हिंसाने पैर पसारे हैं, वह अत्यन्त ही विकृत स्वरूपमें सामने हैं। जिन्दगी देखते-देखते मृत शरीरमें तब्दील हो जा रही है। हिंसाका ताण्डव सरेआम देखनेको मिल रहा है। राजसुख भले ही चंद लोगोंको मिले, परन्तु हारती तो मानवता ही है। दो पार्टीके बीच पिसती मानवताके कराहनेकी आवाज सत्ताके मदमें चूर लोगोंको सुनाई नहीं देता। हकीकत यह है कि इस बार पश्चिम बंगालमें विधान सभा चुनाव लोकतंत्रके हारनेकी पटकथा लिखती हुई प्रतीत होती है। सचाई यही है कि स्वतन्त्रताके ७३ वर्षोंके बाद आज भी बंगालकी राजनीतिको वामपंथी विचारधासे मुक्ति नहीं मिल पायी है। भले ही ममता बनर्जी तृणमूल कांगे्रसकी अगुआ हैं परन्तु विचारधारामें उग्रताके चलते ही कभी भाजपाके कार्यकर्ता हत हो रहे हैं तो कभी तृणमूल कांगे्रस अपने ही कार्यकर्ताओंको दांवपर लगा रही है। भारतकी सबसे बड़ी विशेषता रही है कि राष्ट्रीय सुरक्षापर सभी देशवासी आपसी मनमुटावको दरकिनार करते हुए ‘एक’ हो जाते हैं। पश्चिम बंगालसे हालांकि बंगलादेशकी सीमाएं लगी हुई हैं। ऐसेमें सुरक्षा एवं घुसपैठ सम्बन्धी नीति सर्वोपरि होनी चाहिए। परन्तु प्रधान मंत्री मोदीने जब पराक्रम दिवसका ऐलान किया तो तुरन्त ममता बनर्जीने शक्ति प्रदर्शन कर यह दिखानेकी कोशिश की कि पश्चिम बंगालमें वह जो चाहेंगी, वही होगा। जबकि सुभाष चन्द्र बोस एक वैश्विक नेता हैं उन्हें इस प्रकार एक क्षेत्रमें कैद कर देना नेताजीके व्यक्तित्वके साथ छल है। ममता बनर्जी जमीनी नेता मानी जाती हैं परन्तु जमीनी संघर्षके दिनोंको वह अब लगता है भूल चुकी हैं और दांवपर अपनी ही पार्टीको लगा रही हैं। भाजपाके लिए भले ही यह चुनाव मायने रखता है परन्तु तृणमूल कांगे्रस अपने लिए स्वाभिमानसे जोड़ रही है। यही वोटोंकी राजनीति है जिसमें आम जनता पिस रही है। मात्र अपने हितके लिए जनताको दांवपर लगाना असहनीय प्रतीत हो रहा है।
भारत-अमेरिका संबंध
अमेरिकाके डेढ़ सौ वर्षोंके लोकतांत्रिक इतिहासमें जिस प्रकार इस बार सत्ता परिवर्तन हुआ, वह वर्षोंतक याद रखा जायेगा। अमेरिकी इतिहासमें ऐसे मौके कम ही आये हैं, जब हिंसा, तनाव, कफ्र्यू जैसे माहौलमें राष्टï्रपतिका शपथ ग्रहण समारोह हुआ। अमेरिकाको मिले ४७वें राष्टï्रपति जो बाइडनके शपथ लेते ही कयास लगाये जाने लगे थे कि अब भारतके साथ अमेरिका सम्बन्ध ‘बैकफुट’ पर होगा। परन्तु सुखद यह है कि अमेरिकाके रक्षामंत्रीके तौरपर नामित किये गये लॉयड आस्टिनने कहा है कि बाइडन प्रशासनका लक्ष्य भारतके साथ अमेरिकाकी सैन्य साझेदारीको और मजबूत करना है। साथ ही आस्टिनने सीधे तौरपर भारत विरोधी आतंकी समूहों (जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा) पर पाकिस्तानके ढुलमुल रवैयेपर अपनी रणनीति स्पष्टï की। स्पष्ट है अमेरिका पाकिस्तानपर अपनी पैनी नजर बनाये रखेगा। वहीं, भारतके साथ द्विपक्षीय सम्बन्धोंको मजबूत करनेकी राहपर ही आगे बढ़ेगा। साथ ही अमेरिका और भारतीय सेनाके हितोंके लिए सहयोग भी यथावत रहेगा। भारतके प्रति अमेरिकाका यह सकारात्मक रूख ही दिखता है। ट्रम्पके कार्यकालमें जिस प्रकार दोनों देशोंके रिश्तोंमें मजबूती आयी थी, खासतौरसे रक्षा और सुरक्षा क्षेत्रोंमें कारोबारी समझौते हुए, वह भविष्यमें भी सकारात्मकके साथ आगे बढ़ेंगे। हालांकि अमेरिकाके नये राष्ट्रपति जो बाइडनको भी दक्षिण एशियामें सन्तुलन बनाये रखनेके लिए भी भारतकी आवश्यकता होगी। अमेरिकी हित सर्वोपरि रखनेमें चीन और रूसके साथ शक्ति संतुलन बनाकर रखनेके लिए भी बाइडनको भारतकी जरूरत होगी। अब भले ही अमेरिका नया अध्याय लिखनेकी ओर बढ़ चला है परन्तु उसकी समृद्धिकी राहमें भारतके सहयोग की अवश्य ही आवश्यकता होगी। फिलहाल राष्ट्रपति बाइडनको अपने देशमें फैल चुकी वैमनस्यतासे जूझना होगा। पचास राज्योंवाले देश अमेरिकाके मानवीय सम्मान एवं संस्कृतिके पुनर्जागरणकर विश्वके समक्ष भेदभावसे ऊपर उठकर रूतबा बहाल करनेकी अतिशय जिम्मेदारी होगी। ‘श्वेत एवं अश्वेत’ नागरिकोंमें बंटे अमेरीकियोंमें समन्वय बनानेका जबरदस्त दबाव होगा। हालांकि विश्वके देशोंसे गये नागरिकोंको अमेरिकी समाजने हृदयसे अपनाया है। परन्तु पिछले दिनों जिस प्रकार वैमनस्यता बढ़ी है उससे नये राष्टï्रपतिको निबटना होगा। अब्राहम लिंकन, जार्ज वाशिंगटनके महान देश अमेरिकामें मार्टिन लूथर किंग जैसे वैश्विक नेता भी हुए, जिन्होंने ‘गांधीवाद’ का रास्ता अपनाकर अश्वेतोंके लिए समान अधिकार भी दिलाया। अत: भारतकी उपयोगिता हमेशासे अमेरिकाके लिए रही है। भारत विशाल आबादीवाला देश है। विश्वका बड़ा बाजार है। इसलिए अमेरिका ही नहीं सम्पूर्ण विश्वको भारतकी आवश्यकता है। कोरोना टीकाके विकसित होनेके बाद भारतकी उपयोगिता विश्व महसूस कर रहा है। ऐसेमें अमेरिकाकी नीति अलग कैसे हो सकती है।