सम्पादकीय

परम साधन


दीपचन्द 

परमपिता परमात्माका साक्षात्कार करनेकी विधिका नाम उपासना है। शांत चितसे ईश्वरका ध्यान करते हुए उसकी समीपताका अनुभव करना, अपनी आत्माको आनन्द स्वरूप परमेश्वरमें मगन करना उपासना कहा गया है। हमारे ग्रंथोंमें इसे भक्ति भी कहा गया है। जिस विधिसे चित्तकी वृत्तियोंका निरोध करके परमेश्वरके चिंतनमें स्वयंको लगाया जाता है, वही भक्ति है। नारद पुराणमें लिखा है कि परमेश्वरके प्रति परम प्रेम ही भक्ति है। यह अमृत स्वरूपा है। इस भक्ति उपासनाके पथपर चलनेवाला साधक सर्वथा संतुष्ट हो जाता है। हमारे आध्यात्मिक ग्रंथ वेदोंमें भी उपासनाको परमपिता परमात्माकी प्राप्तिका विशेष साधन माना गया है। दैनिक जीवनचर्यामें मनुष्य अनेक प्रकारकी समस्याओंसे तनावग्रस्त रहता है। इसी तनावका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्यपर कुप्रभाव पड़ता है। तनावसे मुक्त रहनेके लिए अभीतक किसी औषधिका निर्माण तो नहीं हुआ, परन्तु तनाव मुक्तिके लिए जिन विधियोंका परीक्षण हुआ, उसमें सर्वोत्तम है उपासना अर्थात्ï ईश्वरका चिंतन-मनन। संसारके दुखोंसे संतप्त मनुष्यके लिए शांतिप्राप्तिका परम साधन यही उपासना है। हमारे दुखों, कष्टोंकी चिकित्सा है उपासना। मनुष्यके अंत:करणमें जब तामसिक वृत्तियां बढ़ जाती हैं तो मनुष्यमें लोभ, मोह, ईष्र्या, घृणा, कामवासना और अज्ञानता भी बढ़ जाती है, जिससे संपूर्ण अंत:करण मलिन हो जाता है। यही मलिन अंत:करण मनुष्यको अधोगतिकी ओर ले जाता है। परमात्माके साक्षात्कारमें सबसे बड़ी बाधा अंत:करणकी अशुद्धि ही है। उपासना इसी अशांत अंत:करणको सात्विकता, एकाग्रता प्रदान करती है। जब मनुष्य अपने सांसारिक कार्योंसे निवृत्त होकर एकांतमें परमेश्वरका चिंतन करता है तो उससे उसके चित्तको शांति मिलती है। उपासनासे मनुष्यकी आत्मामें आनन्द एवं आध्यात्मिक ऊर्जाका संचार होता है। सात्विक प्रवृत्तियोंका जन्म इसी उपासनासे होता है। सत्व गुणकी वृद्धि चित्तको एकाग्रता प्रदान करती है। हमारे ग्रंथोंका भी यही उद्घोष है-

धर्मार्थ काम मोक्षाणां ज्ञान वैराग्ययोरपि।

अन्त:करणश्च शुद्धिश्च भक्ति हि परं साधनम्॥

अर्थात्ï धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष यह चार वस्तुएं हैं, जिनके लिए मनुष्य भटकता फिरता है। धर्म बुद्धिके लिए, अर्थ शरीरके लिए, काम मनके लिए, मोक्ष आत्माके लिए। इन चारों पुरुषार्थोंकी प्राप्तिका हेतु तथा ज्ञान वैराग्यका परम साधन परमात्माकी भक्ति ही है। भक्ति ही वह साधन है जिसके माध्यमसे मनुष्यके अंत:करणमें पवित्रताका संचार होता है। श्री गुरुनानक देव जीने भी कहा है कि सभी दुखोंकी औषधि प्रभुकी उपासना ही है।