सम्पादकीय

मोदीकी बंगलादेश यात्राके निहितार्थ


अवधेश कुमार  

मोदी जब बंगलादेशके सत्खीरा स्थित शताब्दियों पुराने ५१ शक्तिपीठोंमेंसे एक जेशोरेश्वरी काली मंदिरमें पूजा अर्चना कर रहे थे, सोने और चांदीके मुकुट चढ़ा रहे थे और वह लाइव भारतमें दिखा तो फिर विरोधी और विश्लेषक यह टिप्पणी करेंगे ही कि बंगालके हिंदू मतदाताओंको लुभानेके लिए किया जा रहा है। इसी प्रकार उन्होंने मतुआ समुदायके आध्यात्मिक गुरु हरिचंद ठाकुरके जन्म स्थान गोपालगंज स्थित ओरकांडी मंदिरमें पूजा-अर्चनाके बाद उनको संबोधित किया तो उसका संदेश इस पार आया। आखिर मतुआ महासंघ बंगलादेशसे ज्यादा पश्चिम बंगालमें सक्रिय है। बंगलादेश मतुआ महाआयोगके अध्यक्ष पद्मनाभ ठाकुर हों या हरिचंद ठाकुरके वंशके सदस्य सुब्रतो ठाकुर उनका प्रभाव पश्चिम बंगालके मतुआ समुदायपर निसंदेह है। सुब्रतो ठाकुर बंगलादेशमें काशियानी उपडि़ला परिषदके अध्यक्ष हैं। मतुआ नामशूद्र समुदायका पश्चिम बंगालकी सात लोकसभा सीटों और ६०-७० विधानसभा सीटोंपर प्रभाव है। मोदीने अपने संबोधनमें जिस बोडो मां यानी वीणापानी देवीसे मुलाकातकी चर्चा की उनके जीवनकालमें मतुआ समुदायकी राजनीति उनके संकेतसे संचालित होती थी।

स्वयं ममता बनर्जीने भी मतुआ समुदायको साधनेकी कोशिश की। बोडो मांके सबसे बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुरको बनगांव लोकसभा सीटसे उम्मीदवार बनाया और वह जीतकर २०१४ में सांसद बने। अक्तूबर, २०१४ में जब उनकी मृत्यु हो गयी तो उनकी पत्नी ममता ठाकुरको चुनाव मैदानमें उतारा और वह भी सांसद बनी। जो शांतनु ठाकुर ओरकांडी मंदिरमें मोदीके साथ थे वह अभी बनगांवसे भाजपाके सांसद हैं। उन्होंने ही अपनी चाची ममता ठाकुरको हराया। भाजपाने उनके छोटे भाई सुब्रत ठाकुरको गाईधाट विधानसभा क्षेत्रसे उम्मीदवार बनाया है। संभव है मोदीने ओरकांडी ठाकुरबारीसे बंगाल चुनावको भी साधनेकी कोशिश की हो। विभाजनके बाद उस पार रह गये मतुआ लोगोंके बीच कोई भारतीय प्रधान मंत्री नहीं गया था। मूल प्रश्न है कि प्रधान मंत्रीके रूपमें मोदीका जेशोरेश्वरी मंदिरमें पूजा करना सही कदम था? कूटनीतिका अर्थ केवल आर्थिक, सामरिक राजनीतिक द्विपक्षीय अंतर्संबंध नहीं है। सभ्यता-संस्कृति, अध्यात्म आदि इसके ज्यादा सबल पक्ष हैं। दक्षिण, पूर्वी एशिया आदिमें भारतीय कूटनीति तभी सफल होगी जब भारतके नेता संस्कृति-सभ्यता, धर्म और अध्यात्मके तंतुओंको जोडऩेकी प्रबल कोशिश करेंगे। मोदीने अबतक इस भूमिकाको प्रखरतासे निभाया है। वैसे भी बंगलादेश हो या पाकिस्तान यदि वहां हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन हैं, इनके उपासना स्थान हैं, हमारे देव स्थानोंके कुछ मुख्य केंद्र वहां सदियों पुराने हैं तो उन सबका ध्यान भारतके अलावा और कौन रख सकता है।

भारत और नेपालके बाद हिंदुओंकी सबसे अधिक आबादी आज भी बंगलादेशमें है। लगभग एक करोड़ ७० लाख हिंदू हैं। बंगलादेशके निष्ठावान नागरिक होते हुए भी वह लोग हमेशा भारतसे संकटमें साथकी उम्मीद करते हैं। मोदी जब जून २०१५ में बंगलादेशकी पहली यात्रापर गये थे तब भी उन्होंने ढाकेश्वरी मंदिर और रामकृष्ण मठकी यात्रा की थी। इस समय भी उनकी यात्राका तात्कालिक परिणाम यह हुआ कि बंगलादेश सरकारने जेशोरेश्वरीतक जानेकी सड़कें बेहतर कर दी, वहां गेस्ट हाउस, मंदिर और आसपासके भवनोंका जीर्णोद्धार हुआ। ऐसा ओरकांडी ठाकुर बारीमें भी देखा गया। हरिचंद ठाकुरकी जयंतीपर हर साल बारोनी श्नान उत्सव मनाया जाता है जिसमें भाग लेनेके लिए भारतसे भारी संख्यामें लोग जाते हैं। इस यात्राको आसान बनानेकी मांग बरसोंसे थी और मोदीने इसे पूरा करनेका वादा किया। प्रधान मंत्रीने वहां एक प्राइमरी स्कूल तथा लड़कियोंके मिडिल स्कूलको अपग्रेड करनेके साथ कई घोषणाएं की जिनका असर वहांकी सरकार और प्रशासनपर भी हुआ होगा। आनेवाले समयमें बंगलादेश सरकारकी ओरसे वहांके संपूर्ण हिंदू समुदाय, मंदिरों, मतुआ समुदाय आदिके लिए कई कार्य किये जायंगे। यह भी न भूलें कि गोपालगंज जिलेके ही तुंगीपाड़ामें बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमानकी समाधि है। मोदी वहां जाने और श्रद्धा सुमन अर्पित करनेवाले किसी विदेशी सरकारके पहले मुखिया बने हैं। क्या इसे भी चुनावसे जोड़कर देखा जा सकता है।

मोदीकी यात्राके दौरान द्विपक्षीय सहयोगके विभिन्न क्षेत्रोंमें पांच सहमति पत्रोंपर हस्ताक्षर हुए। प्रधान मंत्रीने अपने ट्वीटमें ही स्पष्ट किया कि भारत और बंगलादेशने आपदा प्रबंधन, खेल एवं युवा मामलों, व्यापार और तकनीक जैसे क्षेत्रोंमें सहमति पत्रोंपर हस्ताक्षर किये हैं। दोनों नेताओंके बीच तीस्ता मुद्देपर चर्चा हुई। प्रधान मंत्रीने शेख हसीनाको कहा कि भारत तीस्ता जल बंटवारे संबंधी समझौतेको पूरा करनेके लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए जो भी हित धारक हैं उन सबसे परामर्श किया जा रहा है। भारतने फेनी नदीके जल बंटवारेके लिए मसौदेको जल्द अंतिम रूप देनेका अनुरोध भी किया। दोनों प्रधान मंत्रियोंने वर्चुअल ही कई परियोजनाओंका संयुक्त रूपसे उद्ïघाटन किया। इनमें भारत-बंगलादेश सीमापर तीन नयी सीमायी हाटें और ढाका न्यू जलपाईगुड़ीके बीच नयी यात्री रेल मिताली एक्सप्रेस शामिल है। इसका महत्व इस मायनेमें है कि भारतने बंगबंधुकी जन्मशती और बंगलादेश मुक्ति संग्रामकी स्वर्ण जयंतीके मौकेपर शुरू करनेकी घोषणा की।

वास्तवमें मोदीकी बंगलादेश यात्रामें जनतासे सरकारतक संबंधोंको सुदृढ़ करने तथा दूरगामी परिणामोंवाला बनानेके कारक सम्मिलित थे। बंगलादेशकी जनताको भावनात्मक तौरपर जोडऩेके लिए प्रधान मंत्रीके वहां जानेके पूर्व शेख मुजीबुरर्हमानको गांधी शांति पुरस्कार-२०२० प्रदान करनेकी घोषणा हो गयी थी। मोदीने जब अपने हाथोंसे शेख हसीनाको यह पुरस्कार सौंपा तो वहां उपस्थित लोग भाव विह्वल थे। इसी तरह कोविड-१९ टीकाका १२ लाख खुराक तथा भारतकी ओरसे १०९ एंबुलेंसोंकी चाबी सौंप कर मोदीने बंगलादेशके लोगोंको संदेश दिया कि उनका संबंध दिलोंतक फैला है। मोदीकी इस यात्राको भारतीय विदेश नीतिके एक व्यापक प्रभावी कार्यक्रमोंके रूपमें देखा जाना चाहिए। यदि बंगलादेशकी स्वतंत्रता घोषित करनेकी स्वर्ण जयंती है और उसमें भारतके प्रधान मंत्री मुख्य अतिथिके रूपमें आमंत्रित किये गये तो उन्हें जाना ही चाहिए था। चूंकि चुनाव है इसलिए प्रधान मंत्री वहां जायं ही नहीं इससे बड़ी आत्मघाती सोच कुछ हो ही नहीं सकती। मोदीने अपने भाषणमें भारत और बंगलादेशको मिलकर विश्वमें जिस निर्णायक और प्रभावी भूमिकाकी बात की वह लंबी वैश्विक साझेदारीकी सोच है। मोदीको भी पता है कि बंगलादेशमें मजहबी कट्टरपंथियों तथा जिहादी आतंकवादियोंकी बड़ी फौज विकसित हो गयी है।

यह समस्या अकेले बंगलादेशकी नहीं, हमारी भी है और हमें मिलकर ही इनका समाधान करना होगा। बंगलादेश भी उभरती हुई आर्थिक शक्ति है। उसकी आजादीमें मुख्य भूमिकाके कारण आज भी बड़ी आबादीका भारतके प्रति भावनात्मक रिश्ता है। उसे लगातार मजबूत करते रहनेकी आवश्यकता है। चीनकी बंगलादेशमें आर्थिक और रक्षा संबंधी गतिविधियां हमारे लिए चिन्ता और चुनौतियां हैं लेकिन केवल उनपर फोकस करनेवाली कूटनीतिसे हम सामना नहीं कर सकते। राजनीतिक, आर्थिक, सामरिकके साथ-साथ सभ्यता-संस्कृति, नस्लीय एकताका संदेश देनेवाले पहलुओंपर पूरा फोकस करते हुए ही हमारा संबंध ज्यादा विश्वासके साथ सुदृढ़ हो सकता है। मोदीने बंगलादेशकी यात्रासे इन्हीं लक्ष्यको पानेकी कोशिश की है।