वाराणसी

सर्व धर्म समभाव की मिसाल बना यह चर्च


सभी से प्रेम की सीख, भारतीय वास्तु कला की मिसाल
सात वार, तेरह त्योहार वाली काशी की बात ही अनूठी है। हर पर्व की रंगत, छटा यहां निराली होती है। गंगा स्नान से लेकर छोटे-बड़े सभी पर्व पर लोगों का उत्साह देखते बनता है और साइबर संसार तक इसकी धमक-चमक दिखाई और सुनाई देती है। सभी एक-दूसरे के साथ मिलकर जहां पर्व मनाते हैं, ऐसा शहर बनारस ही है। श्रावण के सोमवार पर कांवरियों का स्वागत हो या मूर्ति विसर्जन सभी में मुस्लिम बंधुओं की शिरकत, भक्तों की सेवा करना और पुण्य में भागीदार बनने के लिये मसीही समुदाय का आगे आना काशी की रवायत रही है। इसी सर्व धर्म समभाव का भाव यहां के एक अति प्राचीन चर्च में भी देखने को मिलता है। काशी के प्रति लगाव ही होता है कि सात समंदर पार से लोग खिंचे आते हैं। हर पर्व की अपनी अलग ही आभा होती है और इसमें शामिल होने के लिये भी सभी वगों की होड़ होती है। कुल मिलाकर यह कहा जाय कि सभी धर्मो का केंद्र बिंदु यह शहर है तो यह बड़ी बात नहीं होगी। काशी की यही तस्वीर और यही भाव यहां के एक चर्च में भी दिखता है। यह वाराणसी के कैंटोमेंट में बना सेंत मेरी कैथिड्रेल चर्च है। यह अति प्राचीन चर्च है। इसका इतिहास वर्षों पुराना है। विविधता के साथ यह चर्च पूर्णतया भरतीय संस्कृति की झलक को भी दर्शाता है। महागिरजाघर के फादर विजय शांति राज ने बताया कि इस चर्च को भारतीय संस्कृति से जोड़ते हुए इसका निचला हिस्सा अष्टकमल के फूल के आकार का बनाया गया है। यानि भारतीय वास्तुकला में इसे अष्टकोणीय कहा जाता है। कमल पूर्णता का प्रतीक है और शंख भगवान् के सन्देश देने का चिह्नï है। यहाँ ओम, कलश, आम के पत्ते, लताये और ईशा मसीह का संदेश शामिल है। यहीं नही इस चर्च में जहाँ बाइबल के संदेश लिखे हैं, तो गीता के श्लोक सेवाधर्म: परमगहनो योगिनामप्यगम्य भी संस्कृत में अंकित हैं। पीतल के धातु से बने अक्षरों से उकेरे गये हैं। चर्च को जाने-माने पंडित आर्किटेक्ट कृष्ण मेनन और अपनी रचनात्मकता तथा भारतीयता के लिए जाने जाने वाले आर्टिस्ट ज्योति शाही थे। बिशप डॉक्टर यूजीन जोसफ बताते है कि काशी जैसा नगर जो सभी धर्मो का केंद्र बिंदु है, हमारे पूर्वजो ने ऐसा सोचा कि एक ऐसा मंदिर बने जो सबके दिल को भाये। इसलिये इसका निर्माण भारतीय वास्तु शास्त्र के अनुसार किया गया है।