सम्पादकीय

कुटिल पाकिस्तानकी नयी चाल

पुष्परंजन   पाकिस्तानके हृदय परिवर्तनसे हैरान होनेकी जरूरत नहीं है। सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवाने इस्लामाबाद सिक्योरिटी डॉयलागमें कहा कि जो कुछ भारत-पाकिस्तानके बीच हुआ, उसे दफन कीजिए और अब आगेकी सुध लेते हैं। पाकिस्तानी जनरलने कहा कि कश्मीरमें अनुकूल परिस्थितियां बनने लगी हैं। जनरल बाजवाका बयान था कि भारत-पाकिस्तानके संबंध स्थिर होते हैं तो […]

सम्पादकीय

फिर कोरोनाकी वापसी

डा. गौरीशंकर राजहंस  हालमें यह सोचा जा रहा था कि भारतमें कोरोनाका संक्रमण काबूमें आ गया है। पूरे संसारमें प्रधान मंत्री मोदीकी जमकर तारीफ हो रही थी उन्होनें अपने देशके लोगोंको कोरोनाका टीका लगवानेके साथ अनेक जरूरतमंद देशोंको कोरोनाको समाप्त करनेके लिए जी खोलकर वैक्सीन भिजवाया। भारतका वैक्सीन अन्य देशोंके वैक्सीनसे कहीं ज्यादा कारगर और […]

सम्पादकीय

जलकी भयावहता समझना आवश्यक

डा. प्रितम भि. गेडाम जल हर सजीवके लिए आवश्यक है, पानीके बिना जीवनकी कल्पना करना असंभव है। जिस ग्रहपर पानी मिलेगा वही जीवनकी आशा है। भोजनके बिना हम कुछ दिनोंतक जीवित रह सकते हैं लेकिन बिना पानीके हम जीवित नहीं रह सकते हैं। आज हालात ऐसे हैं जब करोड़ों लोगोंके पास साफ पानीकी सुविधा नहीं […]

सम्पादकीय

आध्यात्मिक प्रयास

श्रीराम शर्मा आजके समयमें मनुष्यके बाहर भीतर शांति तथा सुव्यवस्था स्थापित करनेके लिए आध्यात्मिक प्रयास ही सार्थक हो सकते हैं। श्रद्धा, भावना, तत्परता एवं गहराई इन्हींमें समाहित है। मानवका धर्म, सामान्यसे ऊपर, वह कर्तव्य है, जिसे अपनाकर लौकिक, आत्मिक उत्कर्षके मार्ग प्रशस्त हो जाते हैं। धर्म अर्थात्ï जिसे धारण करनेसे व्यक्ति एवं समाजका सर्वांगीण हित […]

सम्पादकीय

भारत-अमेरिकामें रक्षा सहयोग

अमेरिकी रक्षामंत्री लायड आस्टिन तीन दिवसीय भारत यात्रापर हैं। लायड आस्टिन और भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंहकी बैठक हुई, जिसमें दोनों देशोंके बीच रक्षा सहयोगको आगे बढ़ानेपर सहमति हुई। भारतकी नयी वैदेशिक नीतियोंमें तब्दीलियां हुई हैं। अब भारत वैश्विक पटलपर दमदार उपस्थिति दर्ज करा रहा है। यही वजह है कि अमेरिका भारतके साथ रक्षा सहयोगपर व्यापक […]

सम्पादकीय

चीनमें व्यवस्थाकी सफलताका रहस्य

डा. भरत झुनझुनवाला    राजनीतिक एवं वाणिज्यिक स्वतंत्रताओंके बीचमें भेद करना संभव नहीं होगा। ऐसा संभव नही कि लोगोंको व्यापार करनेकी स्वतंत्रता दी जाय लेकिन राजनीतिक स्वतंत्रता न दी जाय। जैसे कम्युनिस्ट रूस एवं कम्युनिस्ट चीनमें राजनीतिक स्वतंत्रतापर प्रतिबंध होनेके साथ व्यपारिक गतिविधियां कमजोर पड़ गयी थीं और कम्युनिज्म ध्वस्त हो गया था। पूर्वका यह आकलन […]

सम्पादकीय

आर्योंमें नहीं थी रंगभेदकी भावना

 हृदयनारायण दीक्षित वर्ण एवं जाति व्यवस्था समाज विभाजक रही है। इससे भारतका बड़ा नुकसान हुआ। कुछ लोग वर्ण व्यवस्थाके जन्म और विकासको दैवी विधान मानते हैं और अनेक विद्वान इसे सामाजिक विकासका परिणाम मानते हैं। डा.अम्बेडकर कहते हैं कि चार वर्णोंकी व्यवस्थाके सम्बंधमें दो भिन्न मत थे। दूसरा मत था कि इस व्यवस्थाका विकास मनुके […]

सम्पादकीय

आरक्षण सीमापर सार्थक विमर्श आवश्यक

 डा. श्रीनाथ सहाय सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानोंमें आरक्षणकी ५० फीसदी तय सीमामें बदलावको लेकर पिछले दिनों सुप्रीम कोर्टने देशके सभी राज्योंसे राय पूछी है। हालांकि मौजूदा समयमें देशके कई राज्योंमें ५० फीसदीसे ज्यादा आरक्षण दिया जा रहे हैं। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट इसके पीछे राज्य सरकारोंका तर्क जानना चाह रहा है। सचाई […]

सम्पादकीय

दुव्र्यसन है आलस्य

श्रीराम शर्मा दुव्र्यसनोंको ठंडी आग कहा जाता है। गर्म आगमें जलकर भस्म हो जानेमें देर नहीं लगती परन्तु पानीमें डूब मरनेसे भी दुष्परिणाम वैसा ही भयंकर निकलता है। अन्तर इतना ही रहता है कि आत्मदाह भयानक लगता है और आंखोंमें काफी देरतक दिल दहलानेवाला दृश्य खड़ा किये रहता है, जबकि पानीमें किसीके डूबनेका समाचार सुनकर […]

सम्पादकीय

बढ़ता विस्थापन

जलवायु परिवर्तनसे उत्पन्न होनेवाली आपदाएं कितनी भयावह और मानव जीवनके लिए पीड़ादायी हैं इसका सहज अनुमान इण्टरनेशनल फेडरेशन आफ रेडक्रास सोसायटी (आईएफआरसी) की ताजा रिपोर्टसे लगाया जा सकता है। इन आपदाओंका सर्वाधिक दुष्प्रभाव महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गोंपर पड़ता है, जिन्हें लम्बे समयतक सहयोग और समर्थनकी आवश्यकता पड़ती है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इन्हें अपेक्षाके […]