सम्पादकीय

ब्रिक्स देशोंका संकल्प


वैश्विक महामारी कोरोनाके खिलाफ जंगमें ब्रिक्सके सदस्य देशोंने एक साथ लडऩेका संकल्प किया है और परस्पर सहयोगकी प्रतिबद्धता भी जतायी है। दिल्लीमें आयोजित आभासी बैठकमें सदस्य देशों ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीकाने सहभागिता की और अध्यक्षता भारतीय परराष्ट्रमंत्री एस. जयशंकरने की। इस बैठकका मुख्य एजेण्डा कोविड-१९ से उत्पन्न दिक्कतों और उसके निराकरणके लिए आपसी सहयोग था। मंगलवारको हुई इस महत्वपूर्ण बैठकमें जयशंकरने ब्रिक्सके मार्गदर्शक सिद्धान्तोंको रेखांकित किया और कहा कि २००६ में न्यूयार्कमें पहली बार हुई विदेश मंत्रियोंकी बैठकसे हम काफी आगे निकल आये हैं। हमारे समूहका मार्गदर्शन करनेवाले सिद्धान्त वर्षोंसे बने हुए हैं। भारतके प्रयासोंसे आयोजित यह बैठक काफी महत्वपूर्ण और सफल भी रही। कोरोनाका मुद्दा बड़ा मुद्दा है और पूरा विश्व इस महामारीसे आक्रांत है। नि:सन्देह ब्रिक्स एक महत्वपूर्ण संघटन है जिसे पांच देशोंने मिलकर बनाया है। यह संघटनकी कुल आबादीका ४२ प्रतिशत, जीडीपीका २३ प्रतिशत और विश्व व्यापारमें १८ प्रतिशतका प्रतिनिधित्व करता है। यह उभरती राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओंका संघ है। इस बैठकमें एक विशेष बात यह देखनेको मिली कि जो चीन भारतका हर कदमपर विरोध करता रहा है उसने भी भारतकी प्रशंसा की। चीनी विदेशमंत्री वांग यीने कहा कि कोविड महामारीके बावजूद इस वर्ष ब्रिक्स शिखर सम्मेलनको आयोजित करनेमें भारतने सराहनीय प्रयास किया। उन्होंने कोरोना महामारीसे निबटनेमें भारतको समर्थन और सहयोग देनेकी पेशकश भी की। मुश्किल घड़ीमें चीन एकजुटतासे भारत और सभी ब्रिक्स देशोंके साथ खड़ा है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भारत निश्चित रूपसे इस महामारीपर विजय प्राप्त कर लेगा। कुटिल नीतिके पोषक चीनके बदले सुरके पीछे क्या राज है, यह अभी स्पष्टï नहीं है लेकिन इतना तो तय है कि उसकी मंशा साफ है। चीनसे ही कोरोना वायरसका जन्म हुआ है और विश्वके अग्रणी वैज्ञानिकोंका मानना है कि यह चीनकी वुहान प्रयोगशालामें तैयार किया गया है। यह वायरस प्राकृतिक नहीं है। अमेरिका, ब्रिटेन, भारत सहित अनेक देशोंने कोरोना वायरसकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें निष्पक्ष जांचकी मांग की है। चीनपर इसके लिए दबाव बढ़ गया है लेकिन वह इसकी जांचके पक्षमें नहीं है और वह इस यक्ष प्रश्नपर बराबर झूठ बोलता जा रहा है। विश्व धारणा भी चीनके खिलाफ है और यही माना जा रहा है कि चीनने ही यह वायरस तैयार किया है। इस स्थितिमें चीनी विदेशमंत्रीका ताजा बयान सन्देहके घेरेमें है और भारतकी प्रशंसा उसकी कुटिल चालका हिस्सा है।

संकटमें उचित निर्णय

केन्द्र सरकारने कोरोना महासंकटको देखते हुए केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की १२वींकी परीक्षा रद कर छात्रोंकी जीवनरक्षा करनेकी दिशामें महत्वपूर्ण फैसला किया है। इस फैसलेसे पशोपेशमें फंसे अभिभावकोंने जहां राहतकी सांस ली है, वहीं दिन-रात परीक्षाकी तैयारी कर रहे छात्रोंको अचानक परीक्षा रद किये जानेके निर्णयसे बड़ा झटका लगा है, क्योंकि १२वींके नतीजोंका उनके पूरे कैरियरपर असर पड़ता है और अभीतक यह साफ नहीं है कि योग्यताका मानक क्या होगा। परीक्षासे ही योग्यताका निर्धारण होता है। हालांकि ऐसे छात्रोंके लिए परीक्षाका विकल्प दिया गया जिसके जरिये वह अपनी श्रेष्ठïता साबित कर सकते हैं, परन्तु ये परीक्षा तभी होगी जब स्थिति अनुकूल होगी। सीबीएसई बोर्डकी परीक्षा रद होनेके बाद बाउंसिल फार द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (सीआईएससीई) ने भी इस साल होनेवाली आईएससी परीक्षा रद कर दी है। परीक्षाका विकल्प देकर इस संकटकी घड़ीमें सरकारने सन्तुलन बनानेका प्रयास किया है जो सराहनीय है। छात्रोंकी जीवन रक्षा तो प्राथमिकता होनी ही चाहिए लेकिन साथ ही उनकी योग्यताका भी निर्धारण हो सके, ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए, क्योंकि देखा जाय तो जीवन ही एक परीक्षा है और हर पल हमें परीक्षासे गुजरना पड़ता है। ऐसेमें पाठ्यक्रमकी परीक्षाकी मर्यादाका भी विशेष ध्यान रखना जरूरी है। केन्द्र सरकारके इस निर्णयके बाद राज्योंपर परीक्षा रद करनेका दबाव बढ़ गया है। गुजरात, हरियाणा, उत्तराखण्ड और मध्यप्रदेशने बोर्डकी परीक्षा रद कर दी है लेकिन उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखण्ड और राजस्थानमें अभी कोई निर्णय नहीं किया गया है लेकिन ऐसी सम्भावना है कि जल्द ही परीक्षापर निर्णय किया जा सकता है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीकी अध्यक्षतामें हुई उच्चस्तरीय बैठकमें सीबीएसई बोर्डकी परीक्षा रद करनेका निर्णय इस संकट कालमें राहत देनेवाला है। कोरोनाकी दूसरी लहर कमजोर जरूरी हुई है लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। ऐसेमें छात्रोंके जीवनके साथ कोई खतरा मोल लेना उचित नहीं है। लेकिन छात्रोंको इससे हताश होनेकी जरूरत नहीं है उन्हें अपनी मेहनत जारी रखनी चाहिए।