साप्ताहिक

मोदीकी अमेरिका यात्रा

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीकी बुधवारसे प्रारम्भ हुई अमेरिका यात्रा विश्वके बदलते राजनीतिक परिदृश्य और नयी चुनौतियोंके सन्दर्भमें अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। इस यात्राके दौरान जहां भारत-अमेरिकाके बीच द्विपक्षीय सम्बन्धोंको और प्रगाढ़ बनानेका प्रयास किया जायगा वहीं विश्वमें बढ़ते आतंकवाद और अफगानिस्तानके ताजा घटनाक्रमोंके परिप्रेक्ष्यमें नयी रणनीति बनानेमें भी यह सहायक साबित होगी। अमेरिकी राष्टï्रपति जो […]

सम्पादकीय

 कुटिल नीतिका शिकार किसान

 देविंदर शर्मा  भारतीय और यूरोपियन किसानके बीच तुलनात्मक अध्ययनमें पाया गया कि भारतके खेतोमें फसल उगानेके लिए होने आनेवाला खर्च क्योंकि अपेक्षाकृत कम है तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय व्यापारका विकल्प खुलनेका कोई आर्थिक लाभ हुआ है। यह वह आम धारणा है, जिसे मुख्यधाराके अर्थशास्त्रियोंने किसानोंके विरोधके बावजूद व्यापार संधिपर हस्ताक्षरको न्यायोचित बतानेके लिए तैयार किया था। […]

सम्पादकीय

चीनको घेरनेकी कोशिश

एन.के. सिंह इंडो-पेसिफिकमें चीनके विस्तारवादी मंसूबोंको साधनेके लिए ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेनने एक नये सुरक्षा समझौते ऑकसकी घोषणा की है। क्वॉडकी तर्जपर आधारित इस समझौतेका मकसद इंडो.पेसिफिकमें चीनकी रणनीति कोशिशोंपर नियंत्रण लगाना है। अमेरिकी राष्ट्रपति जोसेफ बाइडेन, ऑस्ट्रेलियाके प्रधान मंत्री स्कॉट मॉरीसन और ब्रिटेनके प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसनने वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए इस समझौते […]

सम्पादकीय

महबूबाके तालीबानीकरणका असर

 कुलदीप चंद जबसे अफगानिस्तानके अधिकांश हिस्सेपर तालिबानने कब्जा कर लिया है और वहांके राष्ट्रपति अशरफ गनी भाग गये हैं, सेनाध्यक्षने बिना लड़े तालिबानी आतंकियोंके सामने विधिवत आत्मसमर्पण कर दिया है, तबसे भारतमें भी कुछ लोग तालिबानके समर्थनमें खड़े नजर आ रहे हैं। लेकिन जम्मू-कश्मीरकी कश्मीर घाटीकी महबूबा मुफ्तीने तालिबानका उदाहरण देकर भारतको एक प्रकारसे धमकियां […]

सम्पादकीय

पितरोंका सम्मान

मदन गुप्त पितृ पक्ष अपने पूर्वजोंको याद कर उन्हें नमन करनेका समय होता है। साथ ही यह वर्तमान पीढ़ीको यह संदेश देनेका वक्त होता है कि अपनेसे बड़ोंका सम्मान करें। जहां निधनके बाद भी इतनी श्रद्धासे अपने बड़ोंको याद किया जाता है, वहां बड़ोंके प्रति स्नेहकी सीख होना स्वाभाविक है। यह श्रद्धा ही है कि […]

सम्पादकीय

महन्तकी स्तब्धकारी मौत

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषदके अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरिकी सोमवारको प्रयागराज स्थित बाघम्बरी मठमें संदिग्ध परिस्थितियोंमें मृत्यु अत्यन्त ही दुखद और स्तब्धकारी है। इस घटनासे लोग मर्माहत हैं और मृत्युको लेकर अनेक प्रश्न भी लोगोंके मनमें उठ रहे हैं। उनका शव मठके एक कमरेमें फांसी लगा हुआ मिला। उनके अनुयायियोंका कहना है कि महंत नरेन्द्र गिरि […]

सम्पादकीय

अर्थव्यवस्थामें सकारात्मक बदलाव

राजेश माहेश्वरी  देशकी आबादी लगभग १३५ करोड़ है। ऐसेमें देशमें दिसंबरतक वयस्क आबादीके पूर्ण टीकाकरणके लक्ष्यको हासिल करनेके लिए अभियानमें तेजी लानेकी जरूरतसे भी इनकार नहीं किया जा सकता। वहीं इस तथ्यसे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि अभी उन्नीस करोड़से अधिक लोगोंको ही दोनों डोज लगी हैं। ऐसेमें यह प्रश्न स्वाभाविक है […]

सम्पादकीय

अंतरिक्षमें आर्थिक संभावनाएं

अभिजीत मुखोपाध्याय    स्पेस सेक्टरको दो हिस्सों-अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीममें बांट कर देखा जा सकता है। अपस्ट्रीम भागमें मुख्य रूपसे मैनुफैक्चरिंग गतिविधियां, जैसे- सैटेलाइट बनाना, प्रक्षेपण वाहनका निर्माण, संबंधित कल-पूर्जे तैयार करना, उपतंत्रोंका निर्माण आदि आते हैं। डाउनस्ट्रीम हिस्सेमें सेवाओंको गिना जाता है, मसलन सैटेलाइट टीवी, दूरसंचार, रिमोट सेंसिंग, जीपीएस, इमेजरी आदि। अभी मुख्य रूपसे डाउनस्ट्रीमके हिस्सेपर […]

सम्पादकीय

मुश्किल हालातमें जीनेका सामंजस्य

सुरेश सेठ दुनियापर यह कैसी गाज गिरी है कि पिछले बरसके पूर्वाद्र्धसे शुरू हुआ कोरोना प्रकोप विदा लेनेका नाम ही नहीं ले रहा। पिछले वर्षान्ततक उसका दबाव कम हुआ और प्रतिबंध घटते वातावरणमें देशका उद्यमी, व्यवसायी, स्टार्टअप निवेशक और श्रमशील किसान खुली हवामें दम साधकर फिरसे अपने क्षेत्रकी टूट-फूटको संवारनेमें लगना चाहता था। भारतको आत्मनिर्भर […]

सम्पादकीय

मनकी अवस्था

बलदेव राज भारतीय मन चंचल है। मनकी स्थिरता शांति प्रदान करती है। परंतु मनके तुरंग उसे कहां स्थिर रहने देते हैं। मन ही है, जिसके लिए कोई स्थान दुर्गम नहीं है। मन ही है, जिसकी गति प्रकाशकी गतिसे भी अधिक है या यूं कह लीजिए कि समस्त ब्रह्मïाण्डमें सबसे तेज गति मनकी ही है। मनकी […]