सम्पादकीय

राष्ट्र और राज्यकी परिभाषा

मोहन गुरुस्वामी   राष्ट्र वास्तवमें कभी असफल नहीं होते, भले उनपर दखल कर लिया जाता है, उनका विलय हो जाता है, वे पीछे चले जाते हैं या कभी-कभी गायब भी हो जाते हैं। राज्य यानी शासन तंत्र ही विफल होते हैं। इस मामलेमें भ्रम इसलिए रहता है कि हम राज्य और राष्ट्रका प्रयोग पर्यायके रूपमें करते […]

सम्पादकीय

आमजनको लगा भरोसेका टीका

  रमेश सर्राफ धमोरा प्रधान मंत्री मोदीके जन्मदिनके अवसरपर एक ऐसा कायक्रम भी संपन्न हो रहा था, जिससे दुनियाभरमें भारतका सम्मान तो बढ़ा ही साथ ही देशवासियोंकी सुरक्षाकी दृष्टिसे एक मीलका पत्थर स्थापित हुआ। भारतके चिकित्सा जगतसे जुड़े लोगोंने प्रधान मंत्रीके जन्मदिनके अवसरपर एक दिनमें ही दो करोड़ पचास लाख लोगोंको कोरोना वैक्सीनकी डोज लगाकर […]

सम्पादकीय

ध्यानके लाभ

श्रीश्री रविशंकर हम जो सृष्टिके बारेमें जानते हैं वह बहुत ही छोटा है, जो हम नहीं जानते उसके मुकाबलेमें। जो हम नहीं जानते वह बहुत अधिक है और ध्यान उस अज्ञात ज्ञानका द्वार है। इस नये पहलूसे हाथ मिलाइये। ध्यान हमें बहुतसे लाभ देता है। पहला, यह बहुत शांति और प्रसन्नता लाता है। दूसरा, यह […]

सम्पादकीय

 कुटिल नीतिका शिकार किसान

 देविंदर शर्मा  भारतीय और यूरोपियन किसानके बीच तुलनात्मक अध्ययनमें पाया गया कि भारतके खेतोमें फसल उगानेके लिए होने आनेवाला खर्च क्योंकि अपेक्षाकृत कम है तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय व्यापारका विकल्प खुलनेका कोई आर्थिक लाभ हुआ है। यह वह आम धारणा है, जिसे मुख्यधाराके अर्थशास्त्रियोंने किसानोंके विरोधके बावजूद व्यापार संधिपर हस्ताक्षरको न्यायोचित बतानेके लिए तैयार किया था। […]

सम्पादकीय

चीनको घेरनेकी कोशिश

एन.के. सिंह इंडो-पेसिफिकमें चीनके विस्तारवादी मंसूबोंको साधनेके लिए ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेनने एक नये सुरक्षा समझौते ऑकसकी घोषणा की है। क्वॉडकी तर्जपर आधारित इस समझौतेका मकसद इंडो.पेसिफिकमें चीनकी रणनीति कोशिशोंपर नियंत्रण लगाना है। अमेरिकी राष्ट्रपति जोसेफ बाइडेन, ऑस्ट्रेलियाके प्रधान मंत्री स्कॉट मॉरीसन और ब्रिटेनके प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसनने वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए इस समझौते […]

सम्पादकीय

महबूबाके तालीबानीकरणका असर

 कुलदीप चंद जबसे अफगानिस्तानके अधिकांश हिस्सेपर तालिबानने कब्जा कर लिया है और वहांके राष्ट्रपति अशरफ गनी भाग गये हैं, सेनाध्यक्षने बिना लड़े तालिबानी आतंकियोंके सामने विधिवत आत्मसमर्पण कर दिया है, तबसे भारतमें भी कुछ लोग तालिबानके समर्थनमें खड़े नजर आ रहे हैं। लेकिन जम्मू-कश्मीरकी कश्मीर घाटीकी महबूबा मुफ्तीने तालिबानका उदाहरण देकर भारतको एक प्रकारसे धमकियां […]

सम्पादकीय

पितरोंका सम्मान

मदन गुप्त पितृ पक्ष अपने पूर्वजोंको याद कर उन्हें नमन करनेका समय होता है। साथ ही यह वर्तमान पीढ़ीको यह संदेश देनेका वक्त होता है कि अपनेसे बड़ोंका सम्मान करें। जहां निधनके बाद भी इतनी श्रद्धासे अपने बड़ोंको याद किया जाता है, वहां बड़ोंके प्रति स्नेहकी सीख होना स्वाभाविक है। यह श्रद्धा ही है कि […]

सम्पादकीय

महन्तकी स्तब्धकारी मौत

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषदके अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरिकी सोमवारको प्रयागराज स्थित बाघम्बरी मठमें संदिग्ध परिस्थितियोंमें मृत्यु अत्यन्त ही दुखद और स्तब्धकारी है। इस घटनासे लोग मर्माहत हैं और मृत्युको लेकर अनेक प्रश्न भी लोगोंके मनमें उठ रहे हैं। उनका शव मठके एक कमरेमें फांसी लगा हुआ मिला। उनके अनुयायियोंका कहना है कि महंत नरेन्द्र गिरि […]

सम्पादकीय

अर्थव्यवस्थामें सकारात्मक बदलाव

राजेश माहेश्वरी  देशकी आबादी लगभग १३५ करोड़ है। ऐसेमें देशमें दिसंबरतक वयस्क आबादीके पूर्ण टीकाकरणके लक्ष्यको हासिल करनेके लिए अभियानमें तेजी लानेकी जरूरतसे भी इनकार नहीं किया जा सकता। वहीं इस तथ्यसे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि अभी उन्नीस करोड़से अधिक लोगोंको ही दोनों डोज लगी हैं। ऐसेमें यह प्रश्न स्वाभाविक है […]

सम्पादकीय

अंतरिक्षमें आर्थिक संभावनाएं

अभिजीत मुखोपाध्याय    स्पेस सेक्टरको दो हिस्सों-अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीममें बांट कर देखा जा सकता है। अपस्ट्रीम भागमें मुख्य रूपसे मैनुफैक्चरिंग गतिविधियां, जैसे- सैटेलाइट बनाना, प्रक्षेपण वाहनका निर्माण, संबंधित कल-पूर्जे तैयार करना, उपतंत्रोंका निर्माण आदि आते हैं। डाउनस्ट्रीम हिस्सेमें सेवाओंको गिना जाता है, मसलन सैटेलाइट टीवी, दूरसंचार, रिमोट सेंसिंग, जीपीएस, इमेजरी आदि। अभी मुख्य रूपसे डाउनस्ट्रीमके हिस्सेपर […]